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हिंदी दिवस प्रतियोगिता



रिमझिम रिमझिम बरसा सावन
तन भींज गया
मन रीझ गया
पर साजन के बिन खीज गया

बहती पुरवाई हो मद्धम
कानों में बजती है सरगम
मन मेरा मुझसे पूछ रहा
कब प्रीतम का होगा आगम।

नीर भरे मेरे ये नयन
उड़ गई हवा संदेशी बन
घर लौट के आ पहुंचे साजन
खिल गया मेरा आँगन उपवन।

हे सावन तुम फिर फिर आना
साजन को अपने संग लाना
तुमसे आशा की डोर बंधी 
हर विरहन को सुख पहुंचाना।

हिंदी प्रतियोगिता हेतु  १.९.२२
अंशुमान द्विवेदी
मौलिक रचना

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

03-Sep-2022 03:13 PM

बहुत खूबसूरत

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Achha likha hai aapne 🌺💐

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